नारी, तुम हो नारी


जग कहता चपला
करे ना किसी से घपला,
तन मन का जो प्रेम दे,
कहते हैं उसे अबला।

नारी, तुम हो नारी,
हो सुरूप सदाचारी।
त्याग की हो तुम देवी,
तुम ज्योति अपसारी।

नारी, तुम हो नारी,
नहीं हो तुम लाचारी।
कोमलता, ममता है तुमसे,
तुम निपुण संस्कारी।

नारी, तुम हो नारी,
हो प्रकृति अभिमानी।
सीता तुम, सावित्री तुम ही,
नतमस्तक दुनिया सारी।

नारी, तुम हो नारी,
चाहो दिल की यारी।
पंख तेरे थे कुतरे जाते,
हार नहीं पर मानी।

नारी, तुम हो नारी,
लेखन तुमसे प्यारी।
रति छवि, तुम हो सरला,
मनोहर कंठ की वाणी।

Pixabay

वक्ता, मित ह्रास तो देखो,
पर्याक्रमित उपहास सहेजो।
जब चाहा निज धाम सुख,
संसारी अत्याचार भी लेखो।

नारी, तुम हो नारी,
हो कुटुम्ब की प्यारी।
रोकी जाती पल भर में,
दे मर्यादा की दुहारी।

नारी, तुम हो नारी,
संतोषी पर पृथक्कारी।
मित्र हो, मंथरा भी तुम हो,
ये कैसी दुविधा न्यारी।

नारी, तुम हो नारी,
चोटिल, अपनों से हारी।
इच्छा रखो तुम द्वितीयक,
प्रथम नहीं तेरी बारी।

नारी, तुम हो नारी,
चित्त धरो वैरागी।
स्वतन्त्र तो हो, परतन्त्र रहो,
क्यूँ शक्ति लाचारी।

नारी, तुम हो नारी,
हारी, तुम कहाँ हारी!
सद्गुण दुर्गुण मति में तेरी,
प्रणाम तुझे बारम्बारी।

-ऋषभ कुमार

Andrea Piacquadio

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