क्या लिखूँ, क्या लिखूँ, क्या लिखूँ,


क्या लिखूँ, क्या लिखूँ, क्या लिखूँ,

निशब्द सा हूँ मैं लग रहा

बाते तो हैं कई, पर दिल है कहीं गुम सा

खयाल है कम, किसी सोच में हूँ मैं खोया

ना जाने क्यों, ना जाने कहाँ

सजाना, सवारना, फिर लिखकर कुछ उतारना

सजाना, सवारना, फिर लिखकर कुछ उतारना

खुद में सोच फिर, क्या सही, फिर कुछ उसे सुधारना

क्या मैं हूँ सच में कोई कवि,

या कुछ है जिसकी तलाश है

दिल में है कुछ तो आरजू, कुछ है जिससे साँस है

क्या है कहीं एेसा कोई, जिसे मुझसी ही तलाश हो

क्या है कहीं एेसा कोई, जिसे मुझसी ही तलाश हो

ये सोच कोई लिख रहा, पढने की किसको आस हो

हर सोच कहीं पनप रही,

हर सोच कहीं पनप रही, इस सोच में क्या खास है

पर सोच अपनी है सही, समझने की बस बात है

क्या बाहर था जो, अभी मिल रहा

क्या बाहर था जो, अभी मिल रहा, जो मिला नहीं अंदर मुझे

पढ बातें अपनी ही लिखी, क्यूँ करता हूँ मंद हास मैं

क्यूँ करता हूँ मंद हास मैं

-ऋषभ कुमार

Featured image by kaboompics

आशा है आप सभी को अच्छा लगा हो, बस कुछ विचार व्यक्त करते हुए ये रचना हो गई। पढने के लिए धन्यवाद!

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18 thoughts on “क्या लिखूँ, क्या लिखूँ, क्या लिखूँ,

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  1. Wow, bohat khoob! “Dil mae hai kuch aarzu, kuch hai jisse sanse hai” lovely!!
    I only know a little hindi. It’s really beautiful.

    Liked by 1 person

  2. Very beautifully written Rishabh. It was deep and intense💙
    I really liked the choice of words and most importantly the emotions behind. And these lines,
    हर सोच कहीं पनप रही, इस सोच में क्या खास है
    पर सोच अपनी है सही, समझने की बस बात है
    were the soul of this poetry.❤️❤️

    Liked by 1 person

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